Sunday, July 18, 2010

(कहानी) आस्था

करुणा हैरान थी, सोच में पड़ी थी कि यह इत्तेफ़ाक है या दैवी कृपा या चमत्कार है या कोई अनहोनी है ? वास्तुशात्र में गहरी रुचि के कारण उसने नौकरी के साथ – साथ इस विषय पर प्रसिध्द वास्तुशात्रियों की पिछले दो वर्ष से अनगिनत किताबें पढ़ डाली। साथ ही, उत्सुक्तावश करुणा ने चाइनीज़ वास्तुशात्र “फ़ैन्ग-शुई” पर भी ख़ासा अध्ययन चाइनीज़ और भारतीय वास्तुशात्र की समानता और असमानता की थाह लेने की दृष्टि से किया। इसके उपरान्त उसने अपने घर में दोंनो वास्तु का प्रयोग करके परीक्षण करना शुरू किया। उसने अनुभव किया कि कुछ चीज़ों में उसे लगभग एक महीने के अन्दर परिणाम मिलने शुरू हुए, जबकि कुछ में एक सप्ताह में ही अप्रत्याशित रूप से सकारात्मक घटने लगा। वह इस विज्ञान के माध्यम से,घर में आए परिवर्तनों से ख़ुश होने से ज़्यादा, चकित अधिक थी। इतने कम समय में परिणामों की तो उसने तनिक भी उम्मीद नहीं की थी। स्थायी घर मिलने में उसे लगभग एक साल का समय लगा, जो सही था। इतना समय तो लगना भी चाहिए। इससे उसकी आस्था वास्तुशात्र के तर्कयुक्त विज्ञान में और भी गहरी हो गई। करुणा का अटल विश्वास था कि कोई भी काम ढंग से करने के लिए लगन और परिश्रम ज़रूरी होता है, जीवन में सुख – शान्ति इंसान के सकारात्मक कर्मों, सच्ची और अच्छी जीवन शैली पर निर्भर करती है । लेकिन यह भी निर्विवाद सत्य है कि यदि हम वास्तुविज्ञान को जीवन में एकनिष्ठता से अपनाए तो सुख – शान्ति, और सम्पन्नता- समृध्दि दुगुनी हो सकती है। जीवन के वास्तु से आवृत्त होने पर कठिन से कठिन काम भी सरलता से अच्छे परिणाम देने वाले हो जाते हैं। करुणा ऑफ़िस में भी लंच टाइम या कभी भी खाली समय मिलने पर वास्तुशात्र की पुस्तकें पढ़ती और उन पढ़ी-गुनी बातों को परीक्षण हेतु एप्लाई भी करके देखती। उसने भारतीय और चाइनीज़ वास्तुशात्र का मिश्रित प्रयोग करके अनेक सकारात्मक परिणाम घटते अनुभव किए। उसने लाफ़िंग बुध्दा, मैटल चाइम, क्रिस्टल, सिक्के, आदि वॉटर ज़ोन, वुड ज़ोन, मैटल ज़ोन आदि में “फ़ैन्ग-शुई” के नियमानुसार घर में रखे। वह इन चीज़ों के रखने के दिन से लेकर, परिणाम मिलने के दिन तक की अवधि भी नोट करती। कभी परिणाम एक सीमा पे आकर रुक जाते और अटके से रहते। करुणा उन प्रतीक चिन्हों को एक ख़ास अवधि के बाद फिर से उर्जित करती और पाती कि उर्जा चक्र सक्रिय होता जाता व परिणाम करवट लेने लगते। उसने अपने घर के अलावा ऑफ़िस रूम में भी अपेक्षित प्रयोग इस तरह से किए कि कोई नोटिस न कर पाए क्योंकि वह अपने इन आस्थापरक प्रयोगों को सब की नज़र से परीक्षण अवधि तक बचा कर रखना चाहती थी। धीरे-धीरे उसने अपने संबंधीजनों व परिचितों को भी उनकी आवश्यक्तानुसार छोटी-बड़ी बातों में वास्तु अपनाने के सुझाव यदा कदा देने शुरू किए। वह जानती थी कि इस तरह के आध्यात्मिक, तर्कयुक्त एवं भावनात्मक आस्था से जुड़े तथ्यों को ऐसे ही किसी पर थोपा नहीं जा सकता। उचित समीकरण का ध्यान रखते हुए, सही प्रयोग द्वारा ही उनकी अर्थवत्ता को सिध्द किया जा सकता है। इसलिए जब संबंधीजनों व परिचितों को सकारात्मक परिणाम मिले तो, उन सबका भी विश्वास प्राचीन शास्त्रों में उल्लिखित इस विज्ञान के प्रति सक्रिय हुआ और उन्होंने करुणा से अपने घरों में मिश्रित वास्तु के आधार पर व्यवस्थाएँ करवाई। वास्तु के बारे में इतना सुनने के बावजूद भी वे इसे अपनाने की हद तक आस्थावान नहीं थे। किन्तु करुणा की वजह से उन सबकी भी वास्तु में रुचि जागी और इच्छित परिणाम पाकर उनका विश्वास भी क़ायम हुआ।
करुणा ऑफ़िस लौटकर, बिस्तर पे रिलैक्स्ड मूड में पसरी आराम ही कर रही थी कि तभी ट्रिंग- ट्रिंग फ़ोन की घंटी बज उठी। उस समय वह पूरी तरह अपने साथ होना चाहती थी, सो घंटी से वह थोड़ी खीझी सी, लेकिन दूसरे ही पल उसके संस्कारी मन ने उसे फ़ोन की ओर बढ़ा ही दिया और फ़ोन उठाकर वह बोली –
“यैस, करुणा हियर”।
“करुणा गर्ग” ? उधर से किसी बुज़ुर्ग का भारी स्वर उभरा।
“जी हाँ बोल रही हूँ.... “
“बेटा, मैं राजेन्द्र कुलकर्णी बोल रहा हूँ। कुछ लोगों से तुम्हारी वास्तु कन्सल्टैन्सी की तारीफ़ सुनी है। पता चला है कि तुम वास्तु और फैन्ग शुई दोंनो को मिलाकर बड़े कामयाब सुझाव देती हो।“
“जी, थोड़ा बहुत कुछ कर लेती हूँ “– करुणा सोचती सी बोली।
“क्या हमारे घर आ सकोगी ? “
बुज़ुर्गवार के ममत्व भरे विनम्र निवेदन को करुणा टाल नहीं सकी और उसने उनका घर का पता, फोन नम्बर वगैरा लेकर, उन्हें रविवार का दिन दिया।
दो दिन से ऑफ़िस में वर्कलोड अधिक होने के कारण करुणा कुछ थोड़ी थकान सी महसूस कर रही थी। लेकिन उसका दिमाग चुस्त था। शारीरिक थकान तो वह जब-तब महसूस करती थी पर उसने मानसिक रूप से कभी भी थकान नाम की चीज़ नहीं जानी थी। अपनी क्षमता से अधिक घर बाहर का काम करने के कारण ही वह थकती थी, वरना वह एक्टिव, बल्कि ओवरएक्टिव ही रहती थी। नीलिमा उससे अक्सर कहती कि – “मैं तो कोई काम किए बिना ही, नैकरों-चाकरों की सेवा में रहती हुई भी थकी रहती हूँ और एक तू है कि इतने काम करके भी उफ़ तक नहीं करती, जब बिल्कुल ही हद हो जाती है तभी तू थकती है, क्या राज़ है डियर मैडम तुम्हारी इस ताज़गी और चुस्ती का ?“ यह सुनकर करुणा हमेशा मुस्कुरा भर देती। आज करुणा ने सोचा कि नीलिमा के घर धावा बोला जाए, वह पिछले कई दिनों से उसे उलाहना भी दे रही है कि घर नहीं आती, सो उसने सीधे नीलिमा के घर की ओर कार मोड़ दी। कोरेगाँव पार्क आते ही उसने नीलिमा के बेटे के लिए “जर्मन बेकरी“ से “ब्लैक फ़ॉरेस्ट“ पेस्टरीज़ ली और झटपट अपनी “बालेनो“ को उसने लेन नंबर सात के अन्दर दौड़ा दिया। कार पार्क करके फ़र्स्ट फ़्लोर पे पहुँच कर करुणा ने तत्परता से कॉल बैल बजाई। सामने नीलिमा की ‘डॉमेस्टिक हैल्प’ मंगला खड़ी थी, हँसते हुए नमस्ते करती बोली – “अइला दीदी जी आप ! कितने दिन में आया आप ?“ अरे “आया“ नहीं “आई आप“ बोलो, करुणा उसे सुधारती सोफ़े पे बैठ गई, तभी अचानक उसे यूं सामने देख नीलिमा ने खिलखिलाते हुए गले से लगाया “वाह, क्या बात है, व्हाट ए ग्रेट सरप्राइज़, - तो आज याद आ ही गई मेरी। अब खाना खाए बिना नहीं जाने दूँगी, पहले ही बताए दे रही हूँ।“ करुणा भी घोषणा करती बोली कि - “इसी इरादे से तो अचानक धावा बोला है कि चाय से लेकर खाने तक, सब खाकर, तुझे निहाल करके ही जाऊँगी। सच तो ये है नीलू कि पिछले दो दिनों से ऑफ़िस में वर्कलोड अधिक होने के कारण आज मेरा घर जाने का, फिर अकेले – अकेले खाना बनाने का मन ही नहीं था सो तुझसे बिना पूछे, दोस्ती के पूरे अधिकार के साथ मैंने तेरे घर पे धावा बोल दिया। सोचा मिलना भी हो जाएगा और तुझसे मिलकर थकान भी छूमन्तर हो जाएगी।“
नीलू ने प्यार में आकर करुणा के गले में बांहे डाल दी और मंगला से चाय नाश्ता लाने के लिए कहा। कब रात के 10 बज गए, करुणा और नीलू, उसके पति व बेटे को पता ही नहीं चला। करुणा ने सबसे विदा ली और 11 बजे घर पहुँच कर, हाथ –मुंह धोकर, ब्रश करके बैडरूम में मोपासां की कहानियों की किताब लेकर लेट गई। पढ़ते – पढ़ते कब उसकी आँख लग गई, सवेरे आँख खुली तो देखा घड़ी 8 बजा रही थी। “ओफ़्फ़ो, इतनी देर हो गई“ – बुदबुदाती हुई, वह हड़बड़ा कर उठी और तौलिया लेकर बाथरूम में घुस गई। शॉवर लेकर बिना सांस लिए रफ़्तार से तैयार हुई। पूजा करी और किसी तरह लपट झपट कर चाय बनाई, पी और ऑफ़िस के रवाना हो गई। देर होने की वजह से नाश्ता भी न कर सकी, ख़ैर वह तो ऑफ़िस कैंटीन से भी मंगा लेगी। रास्ते में मिलने वाले गिल्लू से उसने रोज़ की तरह छोटी सी माला ख़रीदी और कार में रखे गणेश जी पर माला चढ़ा दी। इतने में ग्रीन सिग्नल हो गया और उसने भी रफ़्तार से कार दौड़ा दी। कई दिनों से कार का थर्ड गियर ठीक से नहीं लग रहा था, कहीं कुछ अटकाव सा था। सोचा शाम को लौटते समय मिकैनिक को दिखायेगी। कार की सर्विसिंग भी ड्यू थी। ऑफ़िस में उसका सारा दिन फ़ाइलों से जूझते हुए बीता। शाम को कार वर्कशॉप में ले जाकर, उसने मिकैनिक को सौंपी और ईस्ट इट्रीट की दुकानों में फ़ैंग शुई का सामान खोजने लगी। अंत में एक दुकान पे उसे “वुडेन चाइम्स“ और सिरेमिक का फव्वारा मिल गया। वह उत्साहित सी डिलीवरी ब्वाय को कार तक साथ लाई। मिकैनिक ने ऑयल वगैरा चैक करके गियर ठीक कर दिया था, साथ ही ज़रूरी चीज़े भी चैक कर ली थी। पीछे के दरवाज़े का हैंडल भी उसने बिना कहे ठीक कर दिया था। करुणा ने एक के बाद एक चारों गियर डाल कर देखे और मिकैनिक को रुपये देने के लिए जैसे ही पर्स खोला, तो वह बोला – “मैडम, आप परसों कार वर्कशॉप में छोड़ दीजिए सर्विसिंग के लिए । आज तो कोई काम ही नहीं था – इसका कुछ नहीं बनता “। करुणा भी उस भलेमानुस पे मुस्कुराये बिना न रह सकी। “ठीक भय्या, थैंक्स तो दे सकती हूँ“। वह भी ‘हाँ’ में सिर हिलाकर, सलाम ठोकता चला गया।
महानगर की सबसे बड़ी त्रासदी है शाम का उमड़ता ट्रैफ़िक और पौल्यूशन के घुमड़ते बादल। ऑफ़िस घर से इतना दूर नहीं था जितना कि वाहनों की घनछत भीड़ के कारण दूर लगता था। ऐसी भयंकर रेलपेल में कार चलाना किसी टॉर्चर से कम नहीं था। घर का एक घंटे का रास्ता वह दो घंटे में तय कर पाती थी। उसकी कार चौराहे के पास थी कि तभी ग्रीन लाइट बंद हो गई और रेड लाइट दमदमा उठी। इतने में सीट पर रखा मोबाइल झनझना उठा। करुणा ने देखा कि कोई अजनबी नंबर उस पे झलक दिखला रहा था। कार रुकी थी तो उसने जल्दी से बात करना ठीक समझा। उधर से कोई खुरदुरा पुरुष स्वर मोबाइल से उसके कान में टकराया,
“मे आइ स्पीक टू करुणा गर्ग“ ?
“स्पीकिंग- मे आइ नो हू इज़ ऑन द लाइन “ ?
“दिस इज़ समीर सिन्हा “
“जी कहिए“
“मैं अपने एपार्टमैन्ट में आपसे वास्तु संबंधी कंसल्टैन्सी चाहता था। आपको कब सुविधा रहेगी आने की ?“
“देखिए प्लीज़ मैं प्रोफ़ैशनल वास्तुशास्त्री नहीं हूँ। मैं तो शौकिया यूं ही थोड़ा बहुत कर लेती हूँ।“
“तो आप शौक को संजीदगी से व्यवसाय में बदल दीजिए। गैरों का भला भी हो जाएगा और आपको आर्थिक लाभ भी, प्लीज़।“
करुणा चाहते हुए भी ‘गैरों का भला’ इसके आगे कुछ न कह सकी। फिर बोली –
“आप मुझे 7 बजे फ़ोन करें कृपया, इस समय मैं ट्रैफ़िक में फँसी हूँ।“
6:30 तक वह फ्रैश होकर बालकनी में बैठी शिकंजी का स्वाद ले रही थी। मौसम बड़ा सुहाना हो रहा था। ड्रॉइंगरूम से मोगरे की अगरबत्ती की भीनी भीनी ख़ुशबू उसे ताज़गी का एहसास करा रही थी। अस्ताचल को ख़ामोशी से जाता सूरज, आकाश के पश्चिमी छोर को गहरे नारंगी और हल्के पीले रंग से भरता हुआ, पल-पल धरती की आग़ोश में समाता जा रहा था। सुरमई शाम बड़ी नज़ाक़त के साथ अपने आंचल से आसमान के पूर्वी हिस्से को ढांपती लहराती चली आ रही थी। ठीक 7 बजे करुणा का मोबाइल बज उठा। एकाएक उसे ध्यान आया कि यह वही व्यक्ति होगा। उसने झटपट प्रोफ़ैशनल एटीट्यूड में उतरते हुए ‘हैलो’ कहा।
“जी, मैं समीर सिन्हा “
“ओ, यैस...... वैसे मि. सिन्हा आपको मेरी वास्तु संबंधी कंसल्टैन्सी के बारे में कहाँ से पता चला ? “
“आपके ऑफ़िस के मिलिन्द देशमुख से।“
“ओह, आइ सी.......मिलिन्द देशमुख, लेकिन उनसे इस विषय पर मेरी कभी किसी तरह की चर्चा नहीं हुई, न ही मैंने ऑफ़िस में किसी को अपने इस शौक के बारे में कुछ बता रखा है। फिर उन्हें कैसे पता चला ? एनी वे, आप मुझे अपना पता लिखा दें। रविवार लंच से पहले मैं आती हूँ।“
करुणा नीलू को 2 -3 दिन से फ़ोन करना चाह रही थी। कुछ “फ़ैन्ग-शुई” संबंधी प्रयोग उसे बताना चाहती थी। पर वह और घरवाले माने या न माने, यह सोचकर अपने को रोक लेती थी। करुणा ने अपने को बहुत रोका, लेकिन अंत में उससे रहा नहीं गया तो उसने नीलू को फ़ोन कर ही डाला।
“हैलो, हैलो, नीलू, ये मैं करुणा..... “
“हाँ करुणा, कैसे याद किया ? “
“नीलू , एक बिन माँगा सुझाव देना चाहती थी; तू अपने बैडरूम के परदों का रंग बदल दे और वो जो लकड़ी का शेल्फ़ उत्तर दिशा में रखा है, उसे पूरब वाली दीवार से लगा कर रख।“
“पर क्यों करुणा ? “
“ये मैं तुझे कुछ दिन बाद बताऊँगी.....देख अभी जानने की ज़िद मत करना प्लीज़।“
क्षण भर के लिए कुछ और बातें करके, करुणा ने फ़ोन रख दिया।

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आज रविवार था। करुणा को आज राजेन्द्र कुलकर्णी और समीर सिन्हा के घर जाना था। सौभाग्य से दोनों अपरिचितों के घर एक ही दिशा में थे, इसलिए उसका कीमती समय ड्राइविंग में अधिक बरबाद नहीं होगा, यह सोचकर वह खुश थी। नाश्ते के बाद तैयार होकर वह पहले बंडगार्डन कुलकर्णी जी के घर पहुँची। उसने कॉल बैल बजाई तो एक प्यारी सी लड़की ने उसका स्वागत किया। उसे समझते देर नहीं लगी कि वह कुलकर्णी जी की बेटी होगी। वह सीधे उसे ड्रॉइंगरूम में ले गई और कुलकर्णी जी को सूचित किया। कुलकर्णी जी दाएँ पैर पे ज़ोर देकर चलते ड्रॉइंगरूम में दाख़िल हुए। करुणा ने उठकर नमस्कार किया, बदले में सरल स्वभाव कुलकर्णी जी ने उसका स्वागत करते हुए आराम से बैठने का संकेत किया। करुणा ने बिना समय गंवाएँ, पहले घर का निरीक्षण करने का निवेदन किया। कुलकर्णी जी साथ चलने के लिए मुख़ातिब हुए तो करुणा ने उनके ठीक से न चल पाने की समस्या का ख़्याल करते हुए उन्हें बैठने के लिए कहा और उनकी बेटी के साथ सारे घर का भलीभांति निरीक्षण किया। तभी उसके पीछे-पीछे मिसेज़ कुलकर्णी बड़े प्यार से यह कहती आई –
“बेटा, पहले कुछ चाय वगैरा ले लेती, बाद में घर देख लेती।“
“आन्टी, आप परेशान न होएं, चाय भी पी लूँगी, लेकिन पहले काम, फिर आप जैसा चाहें।“
घर का बारीकी से निरीक्षण करके, उसने एक काग़ज़ माँगा और उस पर वास्तु के तहत अपेक्षित सुझाव लिख दिए। मि. कुलकर्णी के स्वास्थ्य के बारे में, मिसेज़ कुलकर्णी और उनकी बेटी के बारे में औपचारिक बातें करके, कुछ देर बाद उसने जाने की इज़ाज़त ली और समीर सिन्हा के घर – “बोट क्लब रोड“ की ओर उसकी कार दौड़ने लगी। 10 मिनट में वह मि. सिन्हा की सोसायटी में दाख़िल हो गई थी। वाचमैन से उसने बिल्डिंग का “बी विंग“ पूछा और लिफ़्ट से मि. सिन्हा के फ़्लैट के सामने पहुँच गई। कॉल बैल बजने पे किसी पुरुष ने दरवाज़ा खोला, शायद वह मि. सिन्हा ही थे। तभी वह व्यक्ति बोला –
“आइए आइए, मिस गर्ग न ? “
“आप मि. सिन्हा !“
“जी जी, आइए बैठिए।“
बैठने से पहले, करुणा बोली – “अगर आप पहले मुझे अपना घर दिखा दें, तो ठीक रहेगा।“
“जैसा आप चाहें... “
करुणा ने निरीक्षण करते हुए पैनी नज़र से देखा कि घर बड़ा बेतरतीब सा था। बैडरुम में तो जैसे गदर मचा हुआ था। कोई भी चीज़ ढंग से जगह पर रखी हुई नहीं थी। मेज़ पे किताबें बिखरी पड़ी थी। बिस्तर भी सुब्ह उठने के बाद से शायद बनाया नहीं गया था, कंबल नीचे लटक रहा था, चादर, तकिया सब उबासी ले रहे थे। बिस्तर के नीचे से शराब की बोतल की गर्दन झांक रही थी। बालकनी तो जैसे कबाड़ख़ाना ही थी। लगता था उसमें झाड़ू लगे 15 -20 दिन हो गए थे, छत में लटके जाले हवा से लहरा रहे थे। वह न चाहते हुए भी अनायास पूछ बैठी –
“क्या घर की सफ़ाई के लिए कोई नौकर वगैरा नहीं है क्या आपके पास ?”
“क्यों नहीं, बाई आती है न“
“तो फिर घर की ऐसी हालत क्यूँ “
“मैं तो काम पर चला जाता हूँ, वह मेरे जाने के बाद, बस अपने मन के अनुसार काम आधा अधूरा करके चली जाती है।“
करुणा ने उसके साथ असहज सा महसूस करना शुरु कर दिया था। घर की तरंगे, समूचा वातावरण करुणा को रुग्ण सा बनाने लगा था। अब तक किसी तरह वह अपने को सम्हाले थी।
वापिस ड्रॉइंगरूम में आकर वह बैठने के बजाए, वह उखड़ी-उखड़ी सी खड़ी रही, तो उसको तिरछी नज़रों से चोरी से देखता सिन्हा बोला – “आप खड़ी क्यूँ हैं, कुछ ठंडा या गरम क्या लेगीं आप ? बताइए तो कुछ कि आपने क्या देखा। “
“नहीं, कुछ नहीं लेना, प्लीज़, आप परेशान न होए ।“
“देखिए मिस गर्ग, मेरा बिज़नैस पिछले 6 महीने से बड़ा डाउन चल रहा है। कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ कि ऐसा किस कारण से हो रहा है। हर तरह से ध्यान दे रहा हूँ, फिर भी नहीं सम्हल पा रहा।“
करुणा को मन हुआ कि उससे कहे कि सम्हलने की ज़रूरत तो बिज़नैस के साथ-साथ उसे ख़ुद को भी है। पर वह ख़ामोश रही। उतने में सिन्हा फ़्रिज से कोल्ड ड्रिंक निकाल लाया और गिलास में पलटते हुए बीच-बीच में कुछ अजीब तरह से करुणा की ओर देखने लगा। करुणा के मन में ख़तरे की घंटी बजने लगी। उसे लगा कि कहीं वह चक्कर खाकर न गिर पड़े। धीरे-धीरे उस घर का ‘सिक’ वातावरण उसकी परेशानी बढ़ाता जा रहा था।
“बताइए न करुणा जी,मुझे क्या करना चाहिए ? सुना है कि आपके द्वारा की गई वास्तु बड़ी रिज़ल्ट ओरिएंटैड होती है। हम पर भी थोड़ा करम कर दीजिए।“
उसका यह लहज़ा करुणा को वाकई आपत्तिजनक लगा। ग़म खाती सी वह बोली –
“आइ एम सॉरी मि. सिन्हा, मैं आपके घर में कुछ भी नहीं कर सकूँगी।“
“बट व्हाय ? “ कुछ तो आपको करना ही पड़ेगा। मुझे तो हर हाल में आपसे वास्तु करानी ही है।“
करुणा ने उसे समझाने की कोशिश की..... “देखिए मि. सिन्हा, परिणाम बहुत सी बातों पे निर्भर करते हैं। ये सब हासिल करना इतना आसान नहीं है, या कोई जादू नहीं है, जैसा कि आप समझ रहे हैं।“
लेकिन सिन्हा तो अपनी ज़िद पे अड़ा था कि करुणा को उसके गिरते बिज़नैस को उठाना है।
मरती क्या न करती, यह सोच कर, करुणा ने उसे वास्तु के हिसाब से अपेक्षित परिवर्तन करने के लिए कहा और क्रिस्टल, चाइम्स आदि टांगने, कछुवा जल पात्र में रखने, गोलाकार चौड़े पत्ते वाला पौधा गमले में ईशान कोण में रखने की अपनी ओर से नेक़ सलाह दी। लेकिन उसे अन्दर ही अन्दर पता था कि परिणाम “ढाक के तीन पात“ ही रहने वाले हैं। फिर भी उसने कहा कि एक महीने बाद सिन्हा फ़ोन करके उसे बताए कि क्या कुछ सुधार हुआ।
किसी तरह वह उस दम घोटू घर से निकल कर बाहर आई तो खुले आकाश के नीचे जैसे उसकी सांस में सांस आई। रात में उसे बड़ी देर में नींद आई। वह अभी तक असहज थी। इतने कम समय में सिन्हा के घर से वह कितनी ढेर नकारात्मकता अपने अन्दर समेट लाई थी। उसे पूरे चार दिन लगे अपने को पूरी तरह ठीक करने में।
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नवम्बर की गुलाबी सुब्ह थी। न जाने वर्षा किस खुशी में शरद से मिलने आई थी... हल्की-हल्की बूँदे पड़ने लगीं। मिट्टी की सोंधी ख़ुशबू उसे बालसुलभ उल्लास से भरने लगी। आज से दीवाली की दो दिन की छुट्टी थी। वह क्रॉसवर्ड लाइब्रेरी जाकर वास्तु पर सुब्रहम्णयम की नई प्रकाशित पुस्तक पढ़ना चाहती थी। कमरे में रखा फ़ोन बज उठा, और उसके साथ वह भी उठ खड़ी हुई। मि. कुलकर्णी का फोन था। करुणा के मस्तिष्क में विचार कौंधा कि अभी तो एक महीना होने में सात दिन बाकी हैं, सब ख़ैरियत तो है मेरे बुज़ुर्ग क्लाइन्ट के साथ, यह तर्क वितर्क करते हुए करुणा ने फ़ोन रिसीव किया तो उधर से मि. कुलकर्णी का प्यार और आशीष भरा स्वर कानों में गूँजा –
‘’अरे, बेटा, मान गए, तुम्हारे वास्तु निदान ने तो वाकई मेरे घर में तो जैसे चमत्कार सा कर दिया। बैडरूम में पलंग की दिशा बदलते पर, एक महीना पूरा होने से पहले ही मैं तो बेहद स्वस्थ महसूस कर रहा हूँ। मेरे पैर का दर्द, जो दवा और मालिश से भी नहीं जा रहा था, वो न जाने कहाँ, कब और कैसे चला गया आज सबेरे से। दूसरी बड़ी ख़ुशख़बरी यह कि मेरी बिटिया को विप्रो कम्पनी से एक ऊँचा ऑफ़र आया है - उसके पहली नौकरी के अनुभव के आधार पर।‘’
करुणा की ख़ुशी का ठिकाना न था। उसने उन्हें ढेर सारी बधाई दी। आज उसके अनुभव में यह बात एक बार और निर्धारित हो गई कि यदि इंसान का कर्म जगत उत्तम और स्वच्छ हो तो वास्तु के सकारात्मक परिणाम बड़ी ज़ल्दी मिलने शुरू हो जाते हैं। जैसा कि मि. कुलकर्णी के घर में घटा। चाहे भारतीय वास्तुशास्त्र हो या चाइनीज़, इन शास्त्रों के भी परिणाम देने के कुछ मानदण्ड होते हैं। ये हर इंसान, हर घर में यूँ ही आशीर्वादों की बरसात नहीं करते । पहले व्यक्ति की सुपात्रता जाँचते, परखते हैं, तब मेहरबान होते हैं, वह भी थोड़े- थोड़े विराम के साथ।
सिन्हा के घर जाए करुणा को एक महीना कल पूरा होने वाला था। कुपात्र सिन्हा के माध्यम से करुणा के अनुभव में एक नई कड़ी जुड़ने वाली थी, उसके लिए वह मन ही मन तैयार थी। पूरा दिन निकल गया, अगला दिन भी बीत गया,पर सिन्हा का कोई फोन नहीं आया। तीसरे दिन निराश, हताश सिन्हा का फ़ोन आ ही गया। वह तड़कता, भड़कता सा बोला –
“बेकार है आपका वास्तुशास्त्र, आप बेकार, आपकी फ़ैंग शुई बेकार....न घर में शान्ति, न बाहर शान्ति। बिज़नैस वैसा ही ठप है। दो कौड़ी की है आपकी फ़ैंग शुई, आपका वास्तुशास्त्र,....... “
करुणा बड़े धैर्य से अपनी और वास्तु की शान में सिन्हा के ज़हरीले शब्द सुनती रही। वह तो उसी दिन उसके घर में महसूस कर रही थी कि यहाँ वास्तु भी कामयाब होने वाली नहीं, जब तक उस आदमी के दिलो-दिमाग़ का और उसके घर का कचरा साफ़ नहीं होगा। अब इस नासमझ को वह कैसे समझाए कि वास्तु भौतिक और आध्यात्मिक जगत का एक ऐसा अनूठा विज्ञान है जो भारतीय ऋषियों, दिव्य द्रष्टाओं के हज़ारों वर्षों के अनुभवों व अलौकिक आन्तरिक दृष्टि के समागम से विकसित होता हुआ अस्तित्व में आया। सृष्टि के पंचतत्वों, सौरमंडल के ग्रहों की उर्जा, अद्भुत शक्तियों की महत्ता को समझते हुए ही भारतीय ऋषियों ने , जीवन में सुख –शान्ति, सम्पन्नता – समृध्दि हेतु, प्रकृति और मनुष्य तथा उसके द्वारा निर्मित रचनाकृतियों में समरसता व सन्तुलन बनाए रखने की दृष्टि से विशिष्ट सिध्दान्त ‘वास्तुशास्त्र’ नाम से विकसित किए। जीवन में उनका कितना महत्व है, उसे सिन्हा कैसे महसूस कर सकता है। प्राकृतिक उर्जा से जुड़े वास्तु और फ़ैंग शुई को जीवन में उतारने पर शत प्रतिशत परिणाम
तभी मिल सकते हैं जब इंसान की ख़ुद की जीवन शैली भी स्वच्छ और पारदर्शी हो, उसके कर्म उजले हों – शत प्रतिशत नहीं तो, कम से कम 70% का अनुपात तो सही कार्यो का हो। वरना जाने अंजाने किए गए ग़लत और निकृष्ट कर्मों की ‘नकारात्मकता’ शरीर में , समूचे जीवन में इतनी सघनता से जमा हो जाती है कि ‘वास्तु और फ़ैंग शुई‘ को उस कचरे को व्यक्ति के जीवन और घर से साफ़ करते करते एक लम्बा समय लग जाता है। जब तक स्वार्थ, चालबाज़ी, धोखेबाज़ी, ईर्ष्या, लालच, हिंसात्मक रुझान से भरे व्यक्ति के अन्त:करण व रुढ़ प्रवृत्ति के नकारात्मक अंशों का निष्कासन नहीं होता, तब तक चाहे वह ईश्वर की पूजा – अर्चना हो या वास्तु हो, सबकी शक्ति इच्छित परिणाम देने के बजाय, व्यक्ति के जीवन का कचरा निकालने में लग जाती है।
सात महीने पहले अनुराग गुप्ता की पत्नी ने जब उससे अपनी समस्या बताई कि वे लोग उनके घर से लगा हुआ फ़्लैट पिछले तीन साल से ख़रीदने की कोशिश में लगे, मकान मालिक को छ लाख भी दे दिए हैं, शेष दो लाख घर के काग़जात हाथ में आने पर देने की बात भी तय है, ज़रूरी लिखत पढ़त भी हो चुकी है, लेकिन मकान मालिक घर की चाबी देने में तंग कर रहा है। देने के लिए मना भी नहीं करता और किसी न किसी बहाने से टालता रहता है। तीन साल से इतना महत्वपूर्ण मामला अधर में बिना बात ही लटका हुआ है। पैसा भी फँसा हुआ है। इससे तो वो राशि कहीं अच्छी स्कीम में लगाई होती तो ख़ासा ब्याज ही मिलता। करुणा ने एक दिन का समय मांगा और उस सच्चे, सरल पड़ौसी युगल के लिए ‘फ़ैंग शुई’ की सिर्फ़ दो चीज़े वह ख़ुद ख़रीद कर लाई, उन्हें नमक के पानी में डुबोकर रखा। फिर धोकर, पोंछकर अगले दिन पूजा के समय अपनी अंजलि में लेकर दिल की गहराईयों से प्रार्थना करते हुए ऊर्जित किया। मिसेज़ गुप्ता के घर दस बजे जाकर, समस्या के निदान देने वाली दिशा औऱ कोण में उन ऊर्जित वस्तुओं को कायदे से रखा। सम्भवत: अगले ही दिन से गुप्ता जी के घर में ऊर्जित वस्तुओं का ऊर्जा चक्र इस तेज़ी से सक्रिय हुआ कि एक सप्ताह बीतते- बीतते पास वाले फ़्लैट की चाबी उनके हाथ में आ गई। दोनों पति-पत्नी मिठाई लिए उसके पास यह ख़ुशख़बरी लेकर आए और भाव विह्वल मिसेज़ गुप्ता तो उसके पैर ही छूने लगी। करुणा ने तेज़ी से पैरों की ओर बढ़ते उनके हाथों के थाम कर, उन्हें प्यार से समझाया कि इसके हक़दार वे दोनो ख़ुद हैं क्योंकि वे दोनों इतने साफ़ दिल के हैं कि वास्तु उनके सकारात्मक तरंगों से भरपूर घर में तुरंत सक्रिय हो गई और उनका अटका काम बन गया। इस पर ‘’ना,ना’’ करते अनुराग जी बोले कि –
“देखिए करुणा जी, ईमानदारी से, 80 % श्रेय तो आपको जाता है, क्योंकि आप दिल से प्रार्थना करके, ऊर्जित करके जिस नेक भावना से हमारे लिए वो दो चीज़े लाई, उन्हें सही स्थान पे रखा, वो सब हम नहीं कर सकते थे। 20% श्रेय हम सिर झुका कर लेने को तैयार हैं कि हम सीधे सरल हैं तो आपकी साधना ‘वास्तु के दैवी प्रताप’ से सफल हो गई।‘’
“हाँ तो देखिए न पूरा टीम वर्क है – खाली किसी एक को श्रेय नहीं जाता, सबकी अपनी – अपनी भूमिका है इस उपलब्धि में” – करुणा ने हँसते हुए कहा।
“पर आपके हाथ में शफ़ा है। आपका दिल भी तो सरल व स्वच्छ है, तभी तो ये संभव हुआ। जैसे डॉक्टर बहुत मिलेगें – एक से एक डिग्री होल्डर, लेकिन रोग को दूर भगाने का हुनर कुछ खास-ख़ास डॉक्टरों में सहज ही होता है। उनके तो हाथ रखते ही जैसे मरीज़ ठीक होने लगता है “– अनुराग ने खुशी- खुशी तर्क देते हुए कहा।
“चलिए, अब जो भी है, आपकी समस्या हल हो गई, हमें तो इस ख़ुशी में ईश्वर को शुक्रिया देना चाहिए बस” – करुणा चर्चा को विराम देने के इरादे से बोली।
करुणा को एक और वाक़या याद आया। ठीक इसी तरह दुबे जी का बेटा ऑस्ट्रेलिया से एम.बी.ए. करने की सारी औपचारिकताएँ पूरी कर चुका था, लेकिन वीज़ा मिलने में इतनी परेशानियाँ, एक के बाद एक अड़ंगे आ रहे थे कि निराश होकर उसने जाने का इरादा ही छोड़ सा दिया था। जबकि ऑस्ट्रेलियन इन्स्टिट्यूट में दुबे जी 10 लाख फ़ीस भी जमा कर चुके थे। ऐसे में काम न हो तो निराश तो होता ही है इंसान। पता चलते ही करुणा ने उनके बेटे को एक ‘क्रिस्टल’ ऊर्जित करके दिया और जैसे उसने बताया, पूजास्थल में उसे रख कर रोज़ मिसेज़ दुबे ने और बेटे ने प्रार्थना की। ठीक 8 दिन के अन्दर उसका बाधित काम बन गया। वह नई पीढ़ी का युवक चकित हुआ करुणा को “थैंक्स” कहते नहीं थका। ये अटका काम इसलिए ही बना कि दुबे परिवार की ओर से कहीं कोई कमी थी ही नहीं, एम्बैसी वाले कभी- कभी यूं ही एटीट्यूड फेंका करते हैं, सो वास्तु शक्ति ने उस निरर्थक एटीट्यूड और अकारण के अड़ंगों का सफ़ाया कर दिया और बच्चा अपने भविष्य के रास्ते पे आगे बढ़ गया।
अब करुणा वास्तु शक्ति के इन अलौकिक महीन बिन्दुओं को सिन्हा जैसे जड़ बुध्दि लोगों को कैसे समझाए ? सिवाय इसके कि ऐसे लोगों को उनके हाल पे छोड़ दिया जाए और जो इन बारीकियों के समझने, जीवन में उतारने की दिली इच्छा रखते हैं, उनका भला किया जाए। यह सोचकर करुणा स्फूर्ति से भर उठी और ऑफ़िस जाने की तैयारी में जुट गई। सिन्हा ने जो उसकी शान में फोन पर कसीदे पढ़े थे, उन्हें याद करके उसे हँसी आने लगी। उसे लगा कि कई बार नासमझ इंसान की कड़वी बातें भी किस तरह मनोरंजन का साधन बन जाती हैं। काश कि वह सिन्हा को समझा पाती कि जीना एक कला है – ‘’मूरख रो के जीता है और अक्लमंद हँस कर’’- क्या खूब कह गए ‘संत कबीर’। ईश्वर ने प्रकृति में चारों ओर इतनी सम्पदा हमें बख्शी है, उसका सदुपयोग करना, सीखना चाहिए न सबको ! काश कि ईश्वर के एश्वर्य में, प्रकृति की दिव्य शक्तियों में आस्था उपज जाए सभी लोगों की.....!!









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