Sunday, July 18, 2010

लघु कथाएँ

‘ निरुत्तर ’

बच्ची – अब्बू ! हिन्दू-मुसलमान क्या होता है ?
अब्बू – क्यों, किसी ने कुछ कहा क्या बेटा तुमसे ?
बच्ची – नहीं, हमने फूफी से कहा कि हम अपना नाम ‘सीता’ रखेगें तो फूफी ने कहा कि हम यह नाम नहीं रख सकते क्योंकि हम मुसलमान हैं I
अब्बू – (बच्ची के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए) सायरा बेटा ! हम तुम्हारा एक बहुत ही नायाब नाम रख देते हैं - ‘नफीसा’. कैसा लगा तुम्हें ?
बच्ची – अब्बू ! यह नाम हिन्दू है या मुसलमान ?
अब्बू नन्हें मुख से इस भारी सवाल को सुनकर ‘निरुत्तर’ रह गये I


‘बड़ा शहर ’
बेटा - माँ-बाबा ! आप मेरे साथ शहर में रहने क्यों नहीं चलते ?
माँ-बाबा – हम यहाँ खुश हैं बेटा I घर के सारे आराम हैं, अमन चैन है I
बेटा – फिर भी माँ-बाबा, आप एक बार चल कर तो देखिए कि आपका बेटा कितने बड़े ‘महानगर’ में रहता है, कंपनी ने कितना बड़ा घर दिया है I दरवाजा खुलने से लेकर ए.सी और पंखा चलने तक, सारे काम ‘रिमोट’ का बटन दबाते ही हो जाते हैं I जादू है जादू बाबा ! कमरों से लेकर किचिन तक सारे काम मिनटों में….. I
माँ-बाबा – वो तो सब ठीक है बेटा, पर हमें यही रहने दो I
बेटा – पर क्यों माँ-बाबा ? मैं कुछ नहीं सुनूंगा; बस आपको चलना ही पडेगा...या फिर आप मुझे बताइए कि आपको वहाँ और क्या चाहिए, मैं वह भी आपको दूँगा I

बेटे के इसरार से चिंतित और शहर जाने से कतराते माँ-बाबा हौले से बोले –
बेटा ! तुम्हारे महानगर में ‘आकाश’ प्रदूषण से ढक गया है, ‘धरती’ पर कंकरीट का जंगल उग आया है, ‘जल’ में शहर की गंदगी घुल गई है, ‘हवा’ में कचरे की दुर्गन्ध बस गई है, बड़ी-बड़ी इमारतों में ‘घर’ कहीं खो गया है. तुम चाह कर भी वो पहले जैसा नीला आकाश, हरी भरी धरती, मीठा स्वच्छ जल, रिश्तों की गरमाहट से भरा घर कही से भी खोज कर नहीं ला सकोगे क्योकि इन सबको दफ़न हुए एक अरसा हो गया है......! और हम इन सबके आदी हैं I
यह सुनकर बेटे को पहली बार ‘बड़े शहर’ बौना लगा I


‘ बड़े लोग ’
नेता जी – भाईयों और बहनों ! आप मुझे वोट दीजिए और मैं आपके लिए वो करूँगा, जो आज तक किसी नेता ने नहीं किया I मैं आपको बड़े घर दूँगा, बड़ी सुख सुविधाएं दूँगा, आप ‘बड़े लोगों’ की तरह शान से जीवन जिएगें I मैं आपके जीवन को खुशियों से भर दूँगा, ऐशो-आराम से भर दूँगा और..
भीड़ में से एक फक्कड तीरंदाज़ बोला - और, और, और.....‘भष्टाचार’ से भर दूंगा...!
इस शरारती, पर सही ‘उदघोष’ पर भीड़ ने ठहाका लगाया और देखा कि सामने माइक पे खड़े नेता महाशय और उनके साथी भी ‘खिसियाए ठहाके’ लगा रहे थे I

1 comment:

  1. दीप्ती जी
    नमस्कार !
    आप के ब्लॉग कि यात्रा कि अच्छा लगा .
    धन्यवाद !

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