आँखें
वे आँखें महागाथा सी, लंबी कथा सुनाती
निशब्द, किताबी आँखें वे, कितना कुछ कह-कह जाती
उलझे विचार सी लगती, कभी संवेदना बन जाती
कभी बादल की तरह उमडती, कभी नज़र चिंगारी आती
वे आँखें महागाथा सी, लंबी कथा सुनाती..
कभी किलकती शिशु सी, कभी यौवन सी इठलाती
जीवन संध्या जीने वालों सी, कभी एकाकी हो जाती
वे आँखें महागाथा सी, लंबी कथा सुनाती...
कभी कथानक, कभी संवाद, अनगिनत चरित्रों का संसार
पहुँच चरम सीमा पे वे, कभी अमर सन्देश बन जाती
वे आँखें महागाथा सी, लंबी कथा सुनाती...
उठती, झुकती, मुस्काती, कभी इन्द्रधनुष बन जाती
नवरस छुपाए कोरो में, दर्द के कतरे छलका जाती
वे आँखें महागाथा सी, लंबी कथा सुनाती
निशब्द, किताबी आँखें वे, कितना कुछ कह-कह जाती
Sunday, July 18, 2010
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