Saturday, November 26, 2011


अकेलापन

अकेलापन अकेला कब होता है

यादों की भीड़ से भरा होता है

खोजो टटोलो तो मिलते हैं इसमें

ठहरे हुए पल,जो जमे रहते दिल पर

वीरानियों का एक ऊंचा पहाड

सन्नाटे का एक सघन अम्बार

इतनी जगह घेर लेते ये सब

कि नहीं आने देते महकी बयार

चाहे उपाय करे ये हज़ार

जकड लेते सन्नाटे दिल को हठात

अकेलापन अकेला कब होता है

मायूसियों से भरा होता है

उदासी हर पल साँसें लेती अपार

उजड़े वजूद को न बसने देती कभी

रात-दिन उसको रखती बेज़ार

कौन होता जहाँ में अकेले का अपना

दो चार बातें, पल भर का हास

पर कोई नहीं होता हमेशा को साथ

अकेलेपन का होता नहीं कोई सपना

सिर्फ एक मौन होता इसका अपना

अकेलापन अकेला कब होता है

बोझिल वेदना से भरा होता है

Thursday, October 6, 2011


WALLS SPEAK

Walls tell a story of their own

They absorb the vibrations & rays

of the people living within them

They soak deep the emotions

the sentiments, expressed

in their presence.

Day to day happenings

good or bad incidents

get etched on them !

They become one with the people

who live with them .

They become people's part

and people become their part .

Walls reflect smiles & laughter

tears and disaster .

They project sanity & insanity

They reflect much - much more

only our heart can understand

their language.

With each passing day, they

become old , hackneyed and

mysterious !

Their grave silence allures the

onlooker, they grip their heart

and soul and whisper coolly

all that - they went through.

So, no doubt, walls are great

They have imprints of bygone

days, tales of generations,

griefs and despair of the aged

enjoyment and festivity of

youngesters.

Walls, long live walls !

Even, when they get old

and porous and they start

falling down, still they continue

to stand, how they manage to

stand and stay for ages…!!

Recognized

(Reviewed & Awarded by Fanstory.com)


मौत

बोलो कहाँ नहीं हो तुम ?

बोलो कहाँ नहीं हो तुम ?

सोई मौत को जगाया मैने कह कर यह -

बोलो कहाँ नहीं हो तुम !

बोलो कहाँ नहीं हो तुम !

अचकचा कर उठ बैठी वह,

देखा मुझे चकित होकर कुछ,

बोली - मैं तो सबको अच्छी लगती हूँ - सुप्त-लुप्त

मुझे जगा रही क्यों तुम ?

मैं बोली - जीवन अच्छा,

बहुत अच्छा लगता है

पर, बुरी नहीं लगती हो तुम

बुरी नहीं लगती हो तुम !

ख्यालों में निरन्तर बनी रहती हो तुम

जैसे साँसों में जीवन,

जीवन का ऐसा हिस्सा हो तुम,

जिसे अनदेखा कर सकते, नहीं हम,

ऐसी एक सच्चाई तुम

नकार जिसे सकते नहीं हम,

जीवन के साथ हर पल, हर क्षण,

हर ज़र्रे ज़र्रे में तुम,

बोलो कहाँ नहीं हो तुम ?

बोलो कहाँ नहीं हो तुम ?

जल में हो तुम, थल में हो तुम,

व्योम में पसरी, आग में हो तुम,

सनसन तेज़ हवा में हो तुम,

सूनामी लहरों में हो तुम,

दहलाते भूकम्प में हो तुम,

बन प्रलय उतरती धरती पर जब,

तहस नहस कर देती सब तुम,

अट्ठाहस करती जीवन पर,

भय से भर देती हो तुम

उदयाचल से सूरज को,

अस्ताचल ले जाती तुम,

खिले फूल की पाँखों में,

मुरझाहट बन जाती तुम,

जीवन में कब - कैसे,

चुपके से, छुप जाती तुम

जब-तब झाँक इधर-उधर से,

अपनी झलक दिखाती तुम,

कभी खुशनुमा जश्न को

श्मशान बना जाती तुम,

दबे पाँव जीवन के साथ,

सटके चलती जाती तुम,

कभी पालने पर निर्दय हो,

उतर चली आती हो तुम

तो मिनटों में यौवन को

कभी लील जाती हो तुम,

बोलो कहाँ नहीं हो तुम ?

बोलो कहाँ नहीं हो तुम ?