Saturday, September 15, 2012


 'डा.'   कविता जी,
                     आप  जिस  शब्द  को  लेकर इतना  'हाहाकार'    मचा  रही   हैं   और    शर्म  से  अपनी  गर्दन   झुका-झुका कर  नीची कर रही हैं , साथ  ही   दूसरों की  गर्दन  की भी   चिंता    करके  घुटी  जा  रही  हैं ,  दरअसल  वह  'कोटी'   शब्द  सही है ! 

सचिवालय  की  ये   शुभकामनाएँ    हमारे  पास  भी  आई   थी   और  कोटी  लोगों  के   पास  गई   होगीं ! 

आप अपनी  यह नक्कार खाने  वाली  शैली  और  हाहाकारी  भाषा  कब त्यागेगी  ?  दूसरे   को   ललकारने  से  पहले  अपने  ज्ञान  की जांच  कर लिया   कीजिए  ! दूसरों   को   जो  आप   मास्टरनी    बन   कर  पाठ   पढ़ा    रही   हैं   कि  उनका  हिन्दी का   ज्ञान भी   प्राईमरी   स्तर   का   है ,  नैट  पर  खोज  लेते   वगैरा,  वगैरा .....लेकिन  उससे  पहले,  आप  अपने   ज्ञान  पर   पर  भी    तो  एक  नज़र  डाल  लेती ,  शब्दकोश  खंगाल   लेती,  नैट  पर  खोज  लेती  !  इसलिए  बुजुर्ग  कह   गए   हैं  कि  दूसरे  पर  उंगली  उठाने  से पहले, अपने  गिरेबान  में झाँक  कर भी देख  लेना  चाहिए  !

 कविता  जी,   आप  कोई   भी  शब्दकोश   उठा कर  देखें , आपको  कोटि   और  कोटी  दोनों  शब्द  मिलेगें !     दोनों शब्द   स्वीकृत   हैं  और  पूर्णतया  शुद्ध  हैं !   जैसे  सूची   और  सूचि  दोनों  शब्द  आपको  शब्दकोश   में   मिलेगें ! किसी  भी शब्द  के  दो  रूप   प्रचलित  होने पर  शब्दकोश  उन्हें  दो बार अलग-अलग  देता  है  जिससे पाठक  यह जान ले   कि   दोनों   रूप  सही  हैं, स्वीकृत  हैं  और  प्रचलित   हैं !

२)  कविता  जी,   आप किसी   की  गलती पर  इस तरह   शोर  क्यों  मचाया   करती  हैं  कि  जैसे  बड़ा भारी अनर्थ  हो गया  हो !   कई  बार  आपको  इस   तरह   हो-हल्ला  करते  देख  चुकी   हूँ   और  उस  के बाद  आपको  गलत  सिद्ध  होते  भी देख  चुकी   हूँ !   गलती   कोई   इस  तरह  की भयंकर   होती  कि  चिंता    को  चिता  लिख दिया  गया  होता  या    मातृ छाया  को   मृत्यु छाया  लिखा दिया  होता -   तब   इतना  हल्ला   मचाना   एकबारगी    गले  उतर  भी  जाता ,   लेकिन  यहाँ  तो  आपको  भ्रान्तिवश   इ   और ई  की गलती नज़र  आई  और  आप   लगी   अपने  शाब्दिक  नगाड़े  पीटने लगी !  जबकि   सचिवालय  की  गलती   भी   नहीं   थी  ! खुद आप  ही गलत  निकली  !
अब  आपका   अपनी  गलती  पर  साँस लेना  तो  दूभर   नहीं   हुआ  जा  रहा ? ।  आपकी  हाइपर  अभिव्यक्तियाँ  ''मेरे साँस घुटी न रह जाए, कम से कम इतनी तो अनुकंपा करें''  इतनी  हास्यास्पद  होती  हैं  कि  हमें लगता है - न  जाने  क्या क़यामत  आ गई !   सो   इस तरह  हाइपर  होना  छोडिए, दूसरों  पर   अकारण  ही उंगली  उठाना  बंद  कीजिए  !  क्योंकि    हडबडी  में   की   गई   इस तरह  की गडबडी   हमेशा  आप पर   ही  भारी   पडती   आई  है,  इसलिए  गरिमा  को बनाए  रख    कर  अपने  ज्ञान  की जांच परख  करके  विरोध  करना  सीखिए ! 
   सद् बुद्धि (सद्बुद्धि)   की   शुभकामना  के साथ

                                                                                      दीप्ति

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प्रमाण  स्वरूप  कुछ उदाहरण :


                                संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (कवर्ग)
            

                                         कोटी --- 1 करोड़, 10 लाख
                                         कोटि ----1 करोड़, 10 लाख
         
संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (कवर्ग) - Wiktionary sa.wiktionary.org/wiki/संस्कृत-हिन्दी_शब्दकोश_(कवर्ग)
... शब्दकोश (कवर्ग). Wiktionary इत्यस्मात्. गम्यताम् अत्र : पर्यटनम्, अन्वेषणम्. मूल पृष्ठ पर चलें - संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश ..... कोटी --- 1 करोड़, 10 लाख )

           २)  बेसरि अरु गददह लष्ख इति का महिसा कोटी ।—कीर्ति०, पृ० ९४ ।

           ३)   उ०—कोटी करै वारै पतसाई ।—राम० धर्म०, पृ० १९९ ।

         

      हृदयांजलि: संतकवि रसखान की अनुपम कृति hrudyanjali.blogspot.com/2011/08/blog-post_02.html 2 अगस्त 2011 ...
 

                    जा छवि को रसखान विलोकत, बारत काम कलानिधि कोटी


नमस्ते,

आज आपकी हिन्दी दिवस की शुभकामनाओं वाला ईमेल मिला। धन्यवाद। आप को भी अलग से उसके उत्तर में शुभकामनाओं का एक ईमेल मैंने भेजा था, पुनः शुभकामनाएँ !!

यह ईमेल  एक विशेष प्रयोजन से एक भूल की ओर  ध्यान दिलाने के लिए लिख रही हूँ। 

आप द्वारा भेजे शुभकामना वाले ईमेल में एक चित्र बना था जिस पर अंकित था -   "कोटी कोटी कंठों की भाषा, जन गण की मुखरित अभिलाषा"

मैं ध्यान दिलाना चाहूँगी कि "कोटी कोटी" शब्द पूर्णतः अशुद्ध है। जिसने भी यह बैनर बनाया है, उसे मूल कवि की पंक्तियाँ तो सही सही नहीं ही पता, ऊपर से हिन्दी का ज्ञान भी प्राईमरी स्तर का है, अन्यथा उसे पता होता कि करोड़ के लिए हिन्दी में कोटी  (अशुद्ध ) नहीं अपितु  कोटि (शुद्ध ) शब्द होता है। मजे की बात यह है कि सचिवालय में किसी ने इसे जाँचने तक का कष्ट नहीं उठाया।  

मजे की बात यह है कि लक्ष्मीमल सिंघवी जी की यह कविता तृतीय विश्व हिन्दी सम्मेलन में बोधगीत के रूप में प्रस्तुत की गई थी और निस्संदेह सचिवालय के रिकॉर्ड में उपलब्ध होगी, किसी ने उस से मिलान करने का कष्ट तक नहीं किया। और कुछ नहीं तो नेट पर सर्च ही कर लेने पर इसका सही पाठ उपलब्ध हो जाता। 


विश्व हिन्दी सचिवालय द्वारा हिन्दी दिवस पर शुभकामना संदेश तक में हिन्दी की ऐसी वर्तनी मेरी गर्दन झुका कर बहुत नीची कर देती है और मेरे लिए साँस लेना तक दूभर हो जाता है। इसलिए कृपया निवेदन है कि मेरे साँस घुटी न रह जाए, कम से कम इतनी तो अनुकंपा करें। मेरी तरह जाने किस-किस की गर्दन इस बैनर ने नीची की होगी उन सब की ओर से भी ... 

आपकी अतीव आभारी रहूँगी। 

शुभेच्छु
(डॉ.) कविता वाचक्नवी
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इनलाइन चित्र 1





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विश्व हिंदी सचिवालय 
फोन: 6761196, फैक्स 6761224




2 comments:

  1. मुझे लगता है, कविता जी किसी शब्द के 'मानक' और 'अमानक' रूप को ही क्रमश: 'सही' और 'गलत' मान रही हैं. बहुत सारे शब्दों के दो रूप प्रचलित हैं जिसमें एक रूप अमानक कहा जा सकता है पर अशुद्ध नहीं. 'हिंदी' शब्द की वर्तनी को ही देखा जाए. इसकी वर्तनी 'हिंदी' तथा 'हिन्दी' दोनों है. केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा 'हिंदी' रूप को मानक बताया गया है मगर यह नहीं कहा गया कि 'हिन्दी' गलत है.

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