‘माँ के जाने बाद ’
तू मेरी
माँ, तू ही
पिता थी
इसलिए लगा
मैंने दो जन को खोया
आँखें थी
बरसी, दिल ज़ार-ज़ार रोया
अनगिनत कितनी
मासूम यादें
प्यारी - प्यारी वो
ढेर सारी बातें
डर लगने पर मैंने ‘माँ’ कह के पुकारा
बन भगवान
मेरी, तूने भय से उबारा
दर्द
में नाम तेरा लिया तो
भूली मैं
पीड़ा, दर्द मेरा
भगाया
जब भी
हुई मैं असुरक्षित ज़रा
भी
तेरा वजूद
साया बन मंडराया
उंगली पकड़,
डग भरना सिखाया
डगमगाई, गिरी
तो उठना सिखाया
माँ, पापा,
नानी, मामा
और ताया
शब्दों से
रिश्तों का पाठ
पढाया
बालों में
मेरे, जब तूने रिबिन लगाया
नन्हा सा
मेरा तन - मन
इठलाया
खिलौना टूटा तो बांहों में भर कर
मुझको हंसाया
और हाथों झुलाया
तपी जब भी
ज्वर से, रात में कभी मैं
गोदी में
लिए, मीठी नींद
सुलाया
आई
सर्दी और बर्फ पड़ी तो
पशमीने में
दुबका सीने से लिपटाया
तपती गरमी में बिजली गई तो
हाथों से
घंटों पंखा झलाया
फ्राक सिला,
कभी स्वेटर बनाया
किताबी
सवालों को ही नहीं
जीवन के सवालों को भी, तूने सुलझाया
याद है
दिल जब चिटका
था मेरा
दरारों को
भर तूने, मेरा
जीवन बनाया
रिश्तों की
सीवन उधडी कभी
तो,
बखिया कर,
उन्हें पक्का करना सिखाया....
कभी कवच, तो कभी ढाल बनी तू
मुसीबतों में
हिम्मत का पाठ पढ़ाया
संस्कारों, भावों,विचारों की संपत्ति
दे
कर मुझे संपन्न
बनाया
तूने मुझे
धडकने, साँसे दीं कितनी
इसका हिसाब
कभी न लगाया
छोटी - बड़ी तेरी ढेर सी बातों से
रिश्ते के
आँचल को और गाढा
पाया
मेरा वजूद
ये अक्स
है तेरा
तू मेरे
जीवन का अनमोल
सरमाया !
http://www.parikalpnaa.com/2014/06/blog-post_20.html
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